पहलवान राममूर्ति नायडू
“उबल रही हैं खून में जुनून की कहानियां
नई दिशा दिखा रही है वक्त निशानियाँ
हवा सी घूम-घूमकर घटा सी झूम-झूमकर
नई जमीन तोड़ने निकल पड़ी जवानियाँ
भारत देश की विभिन्न भौगौलिक विषमता तथा विविधता लिए भंगारी प्राकृतिक भारत माता की पवित्र भूमि पर ऐसे सपुत्र पैदा हए जो विश्व में प्राचीनकाल से चमत्कारिता का परचम लहरातेआये थे। भारत भूमि पर जन्म लेना अपने आप में एक गौरव पूर्ण बात है |भारत विश्व गरू रहा है जिसमें हर क्षेत्र में बराबरी करने वाला विश्व में कोई नही था क्षेत्र कोई भी सामाजिकआर्थिक वैज्ञानिक योग खेलकूद् एथेलेटिक्सआदि। हर क्षेत्र में प्राचिनकाल से भारत का अद्वितीय स्थान रहा है। इसी प्रकार एथेलेटिक्स में आधुनिक युग में ऐसा भारत सुपुत्र पैदा हुए है इनमें नायडू जो ब्रिटिश भारत में विश्व में उनके बराबर कोई पहलवान पैदा नहीं हुआ था। अंग्रेजी शासन के कारण ऐसी प्रतिभा का नाम उजागर नहीं हो सका। क्योंकि उसके समान विश्व में कोई बलवान पैदा नहीं हुआ था जो एक 'कलगी भीम' कहे तो कोई अतिश्योक्ति नही है। प्रो. राममूर्ति नायडू का जन्म अप्रैल 1882ई. में आन्ध्र प्रदेश में श्रीकाकुलम जनपद के वीराघट्टम ग्राम में वैकन्ना नायडू के घर जन्म हुआ उनका वास्तविक नाम कोडी राममूर्ति नायडू था। बचपन में दमें की बीमारी से ग्रस्त था ।शरीर से इतना कमजोर था कि स्कूल जाते-जाते रास्ते में ही थक जाता और धरती पकङकर बैठ जाता था। जबकि राममूर्ति के पिता खूब मोटे-ताजे एवं तंदरूस्त थे। और वे राममूर्ति को भी एक प्रभावशाली व्यक्तिव में देखना चाहते थे। किन्तु उत्की शारीरिक दुर्बलता को देखकर वह खिन्न हो जाते । कई बार वे बोलते थे कि "तुम मेरा बेटा होकर तझे अस्पताल में भर्ती होना पड़ता हैं इससे अच्छा होता तुम मर ही जाता।" अपने पिता द्वारा बार-बार तिरस्कत होने से राममूर्ति का मनोबल टुट जाता लेकिन ऐसे में उसकी माँ उसे सँभाल लेती थी। उसमें साहस भर देती थी। हर रोज उसे वीर पुरूषों की गाथाएं सुनाया करती थी। महान योद्वाओं के चरित्र सुनकर राममर्ति अपनी माँ से कहताः" माँ! मैं भी वीर हनुमान पराकमी भीम और अर्जुन जैसा कब बनूँगा।" राममूर्ती की जिज्ञासा देखकर माँ बहुत प्रसन्न होती। माँ भारतीय संस्कृति का आदर करती थी। सत्संग में जाने से हमारे ऋषि मुनियों के बताये हुए प्रयोगों की राममूर्ति थोड़ी बहुत जानकारी उसे थी। उसने उन प्रयोगों को राममूर्ति पर आजमाना शुरू कर दिया। सुबह उठकर खुली हवा में दौड़ लगाना सूर्य की किरणों में यागासन-प्राणायाम करना। दंड-बैठ लगाना, उबले अंजीर का प्रयोग करना...इत्यादि |जब बचपन में ही उनकी माँ का निधन हो जाने से बालक निरंकुश हो गया और हम उम्र साथियों की पिटायी करके उन पर अपना रौंब जताने लगा। पिता ने पिटायी लगायी घर छोड़करखेतों में जाकर छुप गया और सात दिनों बाद लौटा तो एक चीते के बच्चे को कन्धे पर उठाये हुए। राममूर्ति पूरे दिन चीते के बच्चे को कन्धे पर उठाये पूरे वीराघट्टम ग्राम में घूमा करता और सारे गाँव वाले डर के मारे अपने-अपने घरों में छुपे रहेते। इस तरह उसने पूरे गाँव की नाक में दम कर रखा था। अन्त में उसके पिता ने उपाय से काम लिया और उसे अपने छोटे भाई नारायण स्वामी के पास विजयनगर भेज दिया जो उन दिनों वहाँ के पुलिस इन्सपेक्टर थे।
राममर्ति के चाचा पलिस में थे जहाँ प्रत्येक सिपाही का शारीरिक प्रशिक्षण दिया जाता था अतः उसका वहाँ मन लग गया अब तो वह परिश्रम से पढ़ाई भी करता आर शारीरिक व्यायाम भी। उसको बाडी बिल्डिंग में cMk etk vkrk था। नारायणस्वामी ने उसको फिटनेस सेण्टर में दाखिल करा दिया जहाँ उसने जी तोड अभ्यास किया और महाबली का सपना लिय अनाव लौटा। लेकिन गाँव के माहौल में उसे प्रसिद्धि के बजाय व्यंग्य वर्णो का सामना करना पड़ा fxj पडा जिससे उत्तेजित होकर वह गाँव के पट्टों को पटक-पटक कर मारने लगा। आखिरकार परेशान होकर पिता वा स फिर अपने भाई के पास विजयनगर छोड़ आये। चाचा ने भतीजे की कश्ती में रूचि को देखते हुए उस मद्रास भेज दिया जहाँ परे एक साल रहकर पहलवानी का गहन पशिक्षण प्राप्त कर विजयनगरस लाट आया। नारायणस्वामी ने रसे शारीरिक प्रशिक्षक (फिजिकल इन्स्ट्रक्टर) की नौकरी दिला दी।
समर्ति ने शारीरिक बल के खुले प्रदर्शन शुरू किये जिनमें जनता की अपार भीड़ जुटा करती थी। एक बार लार्ड मिण्टा विजयनगर आये। राममूर्ति को एक खेल सझा। उसने उनकी लम्बी चौडी मोटर कार का हुड कस कर पकड़ लिया और उनके ड्राइवर को स्टाई लार्ड मिण्टो के आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब कार एक इन्च भी आगे न बढ़ सकी। इससे मन ख्याति दूर-दर तक फैल गयी। अब उसके मन में एक विचार आया-क्यों न शारीरिक बल जनता का मनोरंजन किया जाये और पैसा भी कमाया जाये। उसके एक मिन्न पोट्टी पन्थलने को क्रियान्वित करने में पूरा सहयोग किया। दोंनो की मेहनत रंग लायी और प्रोफेसर राममति की कम्पनी ने अपने शो के कई कीर्तिमान स्थापित किये । बी. चन्द्रेया नायडू के परामर्श से उन्होंने सर्कस की कला का उपयोग देशभक्ति का ज्वार जगाने में किया। जहां एक ओर वे अपने शारीरिक बल के अदभत करतब करके जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए दूसरे नौजवानों को दण्ड बैठक की आसान विधि बताकर शारीरिक बल बढ़ाने की सीख भी देते ताकि समय आने पर शन्नु को मुह तोड़ जबाब दिया जा सके। इस प्रकार उनकी सर्कस कम्पनी ने पूरे हिन्दुस्तान का भ्रमण किया और स्थान-स्थान पर युवाओं को देशभक्ति का पाठ पढ़ाया। इलाहाबाद के कांग्रेस अधिवेशन में महामना मदनमोहन मालवीय ने उन्हें अपने शारीरिक बल का प्रदर्शन करने के लिये आमन्त्रि किया। इलाबाद में जो आश्चर्यजनक प्रदर्शन उन्होंने किये उनसे उनकी ख्याति देश की सीमाओं को पार कर विदेश में जा पहुँची। मालवीय जी ने उन्हें इसके लिये प्रेरित किया और साधन भी उपलब्ध कराये। सबसे पहले उन्हाने लन्दन जाकर बकिंघम पैलेस में किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी के समक्ष प्रदर्शन किया। उनका आश्चर्यजनक प्रदर्शन देख ब्रिटेन के राजा और रानी इतने अभिभूत हए कि उन्हें इण्डियन हरकुलिस और इण्डियन सैण्डोज जैसे विशेषण प्रदान किये। जब उन्होंने जॉर्ज पंचम के सामने अग्रेजी में इन दोनों विशेषणों के साथ-साथ भारतीय मल्ल विद्या के पौराणिक प्रतीक भीम का तुलनात्मक विवरण पेश किया तो किंग जॉर्ज को अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने खड़े होकर माफी माँगी। इतना ही नहीं; ब्रिटिश सम्राट ने सरकारी आदेश पारित कर प्रोफेसर राममूर्ति के लिये कलियुगी भीम की उपाधि का सार्वजनिक ऐलान किया और इंग्लैण्ड में पूरे राजकीय सम्मान के साथ उन्हें यह उपाधि दी गयी। इसके पश्चात उन्हें कई देशों से बुलावा आया और वे वहाँ खुशी-खुशी गये। एक बार यूरोप का पहलवान युंजियन सेंडो भारत में आया। उसे घमंड था। कि सारे यूरोप खंड में कोई उसे हरा नहीं सकता। राममूर्ति ने यूंजियन सेंडो को संदेश भिजवाया कि वह उसके साथ कुश्ती करे। यह सुनकर यूंजियन सेंडो को आश्चर्य हुआ कि मेरे साथ कुश्ती करने की किसकी हिम्मत हो गयी है। पर जब उसे खबर मिली की राममूर्ति 1200 रतल (करीब 552किलो) वजन उठा लेता है त बवह घबरा गयां क्योंकि वह खुद 800 रतल (करीब 368 किलो) वजन ही उठा सकता था उसने बहाना बनायाः " हम गोरे लोग है, हिन्दस्तानी से हाथ नहीं मिलातें। एक बार प्रोफेसर साहब को स्पेन की बुल फाइट देखने के लिये आमन्त्रि किया गया। बल फाइट देखकर वे क्रोधित हो गये आर उन्होंने माइक से घोषणा की वह एक बेजबान बैल को भालों से छेदकर मार डालने में कौनी सी बहादुरा है! यदि आप में से किसी स्पेन वासी में साहस शक्ति है तो निहथत्थे रिंग में उत्तर कर उसे हराकर करक दिखाइये। यदि आप में से कोई यह नहीं कर सकता तो मैं यह कौतुक दिखाने को प्रस्तुत हूँ। उन्होन कवल डाग ही मारी अपितु जो कहां वह भी करके दिखाया। लोगों की आँखे फटी की फटी रह गयी जब राममूर्ति अपना काला चोंगा पहनकर उतरे और खूख्वार सॉड के सिंग पकड़ बरलार साँड के सिंग पकड़ कर अपना शक्तिशाली भुजाओं से उस पर काब कर लिया और औसा से बाहर भगाकर सबकों आश्चर्यचकित कर दिया। ऐसे बलवान व्यक्ति थे राममर्मि पहलवान! सबसे गवा देश है और खेल महाशक्ति बनने के लिए जिस मानवीय संसाधन की आवश्यकता होती है उसकी प्रचुरता भारत महाभारत की 65 प्रतिशत जनसंख्या 5 वर्ष से कम आयु की है और 25 करोङसे अधिक आबादी 10 से 19 वर्ष के आयु वर्ग में आती है। मानवीय संसाधन की जो अपार संपदा भारत के पास है वह दुनिया के किसी देश के पास नहीं है। जरुरत है बस जोश से भरे युवाओं को सही दिशा में संचालित करने की। इस मामले में चीन की खेल नीति अनुकरणीय हो सकती है। यदि भारत खेल के लिए संरचनात्मक ढाँचे का विकास तथा उसके उन्नतीकरण पर बखूबी ध्यानदे और एक स्पष्ट खेल नीति के तहत काम करे तो कोई कारण नहीं है ओलंपिक में हमारा प्रदर्शन खराब हो। लेकिन, इसके लिये धैर्य व संयम से दीर्घकालीन खेल परियोजनाओं की दिशा में निरतर प्रयासरत रहने की आवश्यकता है। खेल पर शोध, स्पोर्टस मेडिसन पर शोध, खेल प्रैक्टिस लैब और ग्राउंड, स्टेडियम, कोच आदि की उचित व्यवस्था करते हुए भारत में खेल के प्रति कुछ पूर्वाग्रहों को दूर करना तथा खेल संघों के उचित नियमन की भी बहुत आवश्यकता है।
Yks[kd- dSyk’kjke lkaxok
Writer- kailashramsangwa
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